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आ न॑ इन्दो शत॒ग्विनं॒ गवां॒ पोषं॒ स्वश्व्य॑म् । वहा॒ भग॑त्तिमू॒तये॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā na indo śatagvinaṁ gavām poṣaṁ svaśvyam | vahā bhagattim ūtaye ||

पद पाठ

आ । नः॒ । इ॒न्दो॒ इति॑ । श॒त॒ऽग्विन॑म् । गवा॑म् । पोष॑म् । सु॒ऽअश्व्य॑म् । वह॑ । भग॑त्तिम् । ऊ॒तये॑ ॥ ९.६५.१७

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:65» मन्त्र:17 | अष्टक:7» अध्याय:2» वर्ग:4» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:17


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप ! (भगत्तिं) हमारी भक्ति की (ऊतये) रक्षा के लिये हे परमात्मन् ! (न आ वह) आप हमको प्राप्त हों और (गवाम्) इन्द्रियों की (शतग्विनम्) सहस्रगुणी (पोषं) पुष्टि (स्वश्यं) जो गतिशील है, ऐसी पुष्टि आप हमको दें ॥१७॥
भावार्थभाषाः - जो लोग परमात्मा की अनन्य भक्ति करते हैं, परमात्मा उनकी सब प्रकार से रक्षा करता है और उनकी इन्द्रियों को सहस्त्र प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न करता है अर्थात् ज्ञान-विज्ञानादि शक्तियों से उनकी सहस्त्र प्रकार की शक्तियें बढ़ जाती हैं। इसी का नाम इन्द्रियों की सहस्त्रशक्ति है ॥१७॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमेश्वर ! (भगत्तिं) अस्मद्भक्तेः (ऊतये) रक्षार्थं (न आ वह) अस्मभ्यं प्राप्तो भवतु। अथ च (गवाम्) इन्द्रियाणां (शतग्विनं) सहस्रगुणां (पोषं) पुष्टिं तथा (स्वश्यं) गतिशीलां पुष्टिं मह्यं भवान् ददातु ॥१७॥